फिल्म की कहानी 1995 से शुरू होती है जब प्रधानमंत्री के ऑफिस में चीन के परमाणु परीक्षण के बारे में बातचीत चल रही थी. तभी IAS ऑफिसर अश्वत रैना ( जॉन अब्राहम) ने भारत को भी एक न्यूक्लियर पावर बनने की सलाह दी. किन्हीं कारणों से अश्वत्थ की बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाई तो गई, लेकिन परीक्षण सफल नहीं हो पाया और अमेरिका ने हस्तक्षेप किया. इसके बाद अश्वत रैना को उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया.
अशोक के परिवार में उनकी पत्नी सुषमा (अनुजा साठे) माता-पिता और एक बेटा प्रह्लाद भी है. कुछ समय बाद अशोक का परिवार मसूरी शिफ्ट हो जाता है और लगभग 3 साल के बाद जब प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में हिमांशु शुक्ला ( बोमन ईरानी ) की एंट्री होती है तो एक बार फिर से परमाणु परीक्षण की बात चलने लगती है. हिमांशु जल्द से जल्द अश्वत को खोज निकालता है और परमाणु परीक्षण के लिए टीम बनाने के लिए कहता है.
अश्वत्थ अपने हिसाब से टीम की रचना करता है, जिसमें BARK,DRDO, आर्मी के साथ-साथ अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंटेलिजेंस के भी लोग होते हैं. एक बार फिर से 1998 में परमाणु परीक्षण की तैयारी की जाती है, जिसके बारे में अमेरिका को कानों कान खबर ना हो इसका सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है. इसी बीच भारत में अमेरिका और पाकिस्तान के जासूसों की मौजूदगी इस परीक्षण को किस तरह से नाकामयाब किया जाए उसका भी ध्यान देती है. अंततः इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत न्यूक्लियर पावर के रूप में सबके सामने नजर आता है और एक बड़ी शक्ति के रूप में दिखाई देता है यही फिल्म में दर्शाया गया है.
फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है. 1998 में भारत में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के साथ-साथ आस-पास के देश भी हिल गए थे. इस पूरी घटना को निर्देशक अभिषेक शर्मा ने बखूब दर्शाया है और फिल्म देखते वक्त आपको गर्व महसूस होता है.
फिल्म का स्क्रीनप्ले जबरदस्त है, जिसके लिए इसके लेखक सेवन क्वाद्रस, संयुक्ता चावला शेख और अभिषेक शर्मा बधाई के पात्र हैं.
फिल्म आपको बांधने में सफल रहती है और भारतीय होने के नाते एक अलग तरह का फक्र भी आपको महसूस होता है.
सिनेमेटोग्राफी और लोकेशन बढ़िया है. इसी के साथ समय समय पर प्रयोग में लाई जाने वाली 90 के दशक की फुटेज भी काफी कारगर है, जिन्हें बड़े ही अच्छे अंदाज से फिल्म के स्क्रीनप्ले में प्रयोग मे
अशोक के परिवार में उनकी पत्नी सुषमा (अनुजा साठे) माता-पिता और एक बेटा प्रह्लाद भी है. कुछ समय बाद अशोक का परिवार मसूरी शिफ्ट हो जाता है और लगभग 3 साल के बाद जब प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में हिमांशु शुक्ला ( बोमन ईरानी ) की एंट्री होती है तो एक बार फिर से परमाणु परीक्षण की बात चलने लगती है. हिमांशु जल्द से जल्द अश्वत को खोज निकालता है और परमाणु परीक्षण के लिए टीम बनाने के लिए कहता है.
अश्वत्थ अपने हिसाब से टीम की रचना करता है, जिसमें BARK,DRDO, आर्मी के साथ-साथ अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंटेलिजेंस के भी लोग होते हैं. एक बार फिर से 1998 में परमाणु परीक्षण की तैयारी की जाती है, जिसके बारे में अमेरिका को कानों कान खबर ना हो इसका सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है. इसी बीच भारत में अमेरिका और पाकिस्तान के जासूसों की मौजूदगी इस परीक्षण को किस तरह से नाकामयाब किया जाए उसका भी ध्यान देती है. अंततः इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत न्यूक्लियर पावर के रूप में सबके सामने नजर आता है और एक बड़ी शक्ति के रूप में दिखाई देता है यही फिल्म में दर्शाया गया है.
फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है. 1998 में भारत में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के साथ-साथ आस-पास के देश भी हिल गए थे. इस पूरी घटना को निर्देशक अभिषेक शर्मा ने बखूब दर्शाया है और फिल्म देखते वक्त आपको गर्व महसूस होता है.
फिल्म का स्क्रीनप्ले जबरदस्त है, जिसके लिए इसके लेखक सेवन क्वाद्रस, संयुक्ता चावला शेख और अभिषेक शर्मा बधाई के पात्र हैं.
फिल्म आपको बांधने में सफल रहती है और भारतीय होने के नाते एक अलग तरह का फक्र भी आपको महसूस होता है.
सिनेमेटोग्राफी और लोकेशन बढ़िया है. इसी के साथ समय समय पर प्रयोग में लाई जाने वाली 90 के दशक की फुटेज भी काफी कारगर है, जिन्हें बड़े ही अच्छे अंदाज से फिल्म के स्क्रीनप्ले में प्रयोग मे
0 Comments